आज तकनीक के साथ-साथ वाहन लेनदेन भी आसान हो गया है।आज ज्यादातर लोगों के पास बाइक और कार हैं।लेकिन एक समय ऐसा भी था जब यात्रा के लिए बैलगाड़ियों का इस्तेमाल किया जाता था और लोग उनमें यात्रा भी करते थे।हमारे दादाजी ने जहां उनके कई मामले सुने होंगे, वहीं इस आधुनिक युग में बैलगाड़ी में बैठना भी आश्चर्य की बात है।
जहां पूरे देश में बैलगाड़ी की सवारी पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, वहीं देश में एक जगह ऐसी भी है जहां आपको बैलगाड़ी में बैठने के लिए हजारों रुपये देने पड़ते हैं।ज्यादातर समय आप 5 या 6 किमी की सुबह के लिए 50 रुपये या 100 रुपये या 200 रुपये तक का भुगतान कर सकते हैं, लेकिन आपको इस जगह पर एक बैलगाड़ी के लिए 5,000 रुपये से 6,000 रुपये का भुगतान करना होगा।
ऐसा नहीं है कि इस गांव तक पहुंचने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं है, न ही कोई परिवहन सुविधा है, लोग यहां बैलगाड़ियों में सवार होकर आते हैं, भले ही वे अपनी महंगी गाड़ियां लेकर आते हैं और घूमने आते हैं।हजारों लोग बैलगाड़ियों में 12 किलोमीटर का सफर तय कर मेले में पहुंचते हैं।
सुनकर हैरानी होगी लेकिन यह जगह मध्य प्रदेश के रतलाम जिले में है।जहां यह कहानी सच होगी।वह यहां के बिब्रोड गांव के प्रसिद्ध जैन मंदिर में जाने के लिए बैलगाड़ी का इस्तेमाल करते हैं और अहमदाबाद से मुंबई तक के हवाई किराए से भी ज्यादा किराया देते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह घटना साल में एक बार ही होती है.रतलाम के बिब्रोद गांव में स्थित प्रसिद्ध स्वामी ऋषभदेव मंदिर में पोश मास में आमस के दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए यहां आते हैं।ऐसी मान्यता है कि बैलगाड़ी में इस मंदिर में आने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है और सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
रतलाम और आसपास के अन्य क्षेत्रों से हजारों भक्त हर साल ऋषभदेव मंदिर में आते हैं।हाल के दिनों में बैलगाड़ियों की संख्या भी काफी बढ़ गई है।अधिकांश श्रद्धालु यहां आने से पहले बैलगाड़ी बुक कर लेते हैं।जिससे आपको यहां पहुंचने में किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है।
बात करते हैं बैलगाड़ी के किराये की।दो से तीन लोगों का छोटा परिवार हो तो छोटी बैलगाड़ी बुक कर लेते हैं।किराया करीब 2 हजार रुपये है और परिवार बड़ा है तो वह पांच से आठ हजार रुपये के किराए में एक बड़ी बैलगाड़ी बुक करता है।
इस स्थान पर लगने वाले मेले को प्रदूषण मुक्त मीट भी कहा जाता है।ऐसा इसलिए है क्योंकि वाहनों के कम ट्रैफिक के कारण यहां प्रदूषण कम है।तो आज भी इस मेले के अंदर आप हाथ मलते देख सकते हैं।इस मेले में डीजल मोटर या बिजली से चलने वाली अत्याधुनिक मोटरबाइकें आज भी नहीं देखी जाती हैं।