सनातन संस्कृति में देवी दुर्गा को शक्ति की देवी माना जाता है। ऐसे में साल में चार बड़े त्योहार होते हैं जो उन्हें खुश कर देते हैं। इन चार त्योहारों में से एक, शारदीय नवरात्रि, गुरुवार, 07 अक्टूबर, 2021 को शुरू हुआ।
नवरात्रि के खास पर्व में व्रत सहित मां दुर्गा की उपासना का भी नियम है। लंबे समय से चली आ रही पूजा पद्धति भी समय के साथ बदल रही है ऐसे में जानकारों का कहना है कि मां दुर्गा की पूजा और व्रत के नए रूप को लेकर कुछ खास कानून हैं. इनमें से शक्ति की देवी नव दुर्गा की पूजा सबसे प्रमुख है।
आइए जानते हैं माता देवी के हर रूप
1. शैलपुत्री माता देवी का पहला रूप: धार्मिक शास्त्रों के अनुसार उनका जन्म पर्वतराज हिमालय के घर में हुआ था। और माता का यह रूप वृष यानि बैल पर विराजमान है। नवदुर्गा में पहले दिन उनकी पूजा के अलावा घाट भी स्थापित किया जाता है।
पूजा विधि : कलश स्थापना के समय पहले दिन पीले वस्त्र धारण कर मां को सफेद वस्त्र, सफेद मेवा या मिठाई व सफेद फूल अर्पित करें. स्तुति मंत्र वंदे वंचितलभय, चंद्राधाकृतशेख-राम। वृषारुढां शूलधरं, शैलपुत्री यशस्विनीम् ।।
2. ब्रह्मचारिणी माता देवी का दूसरा रूप: माता देवी के इस रूप में नवरात्रि के दूसरे दिन दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमंडल लेकर मां की सेवा की जाती है.
पूजा की विधि: इस दिन मां को पंचामृत से स्नान कराकर फूल, अक्षत, रोली, चंदन, मिश्री, लौंग, इलायची, दूध और दूध से बने व्यंजन चढ़ाएं. स्तुति मंत्र दधन ओम रपद्माभ्यं, अक्षमाला-कमंडल। देवी प्रसिदातु माई, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा में।
3. चंद्रघंटा माता देवी का तीसरा रूप : माता देवी के इस रूप में उन्होंने अपने सिर पर अर्धचंद्राकार चंद्रमा धारण किया हुआ है। दस हाथों में त्रिशूल, तलवार, गदा, धनुष जैसे विभिन्न हथियार हैं।
पूजा का तरीका: इस दिन ऐसे वस्त्र धारण करें जैसे माता को वाहन सिंह और सुनहरे रंग पसंद हों, देवी को खीर सफेद बर्फ या शहद का भोग लगाएं. स्तुति मंत्र पिंडजप्रवररुधा, चन्दकोपस्त्र-कर्युत। प्रसादम तनुते महयम, चंद्रघण्टेती विस्रुत।
4. कुष्मांडा माता देवी का चौथा रूप: धार्मिक मान्यता के अनुसार जब सृष्टि से पहले अंधकार फैल गया, तब मां दुर्गा ने ब्रह्मांड की रचना की और इसलिए उनका नाम कुष्मांडा पड़ा।
पूजा की विधि: इस दिन माता के हाथ में फूल लेकर उन्हें प्रणाम करें, कथा सुनें और छह गुणा उपचार, पूजा और आरती करें, मालपुआ या कोलू पेठा चढ़ाएं. स्तुति मंत्र सुरसंपूर्ण ओम लशन, रुधिरप्लुतमेव चा। दधना हस्तपद्माभयान, कुष्मांडा शुभदास्तु में।
5. स्कंदमाता माता देवी का पांचवां रूप: माता देवी अपने स्कंदमाता कार्तिकेय रूप में अवतरित हैं। उनके हाथ स्कंद, कमल, श्वेतकमल और वर मुद्रा में हैं।
पूजा की विधि: इस दिन देवी मां की पूजा के तहत पानी के बर्तन में मुद्रा रखकर चौकी पर रखें. रोली-कुमकुम और प्रसाद चढ़ाएं. सफेद वस्त्र धारण करें और देवी को केले का भोग लगाएं. स्तुति मंत्र सिंहसनगत नित्यान, पद्मश्री ओम आर-द्वय। शुभदास्तु सदा देवी, स्कंदमाता यशस्विनी।
6. कात्यानी मातृदेवी छठा रूप: इस रूप में सिम्हरुंध देवी की सुनहरी चमक है। उनका दाहिना हाथ अभय और वर मुद्रा में है और उनका बायां हाथ खरगा और कमल से सुशोभित है।
पूजा की विधि : देवी मां के इस रूप की पूजा के दौरान लाल या पीले वस्त्र ?? धारण करना चाहिए। इस दौरान गंगाजल का छिड़काव करें। पीले फूलों की गांठ, कच्ची हल्दी और शहद चढ़ाएं। धूप-दीप से आरती करें। स्तुति मंत्र चंद्रहासोज्वल ओम रा, शार्दुलवर-वाहन। कात्यायनी शुभम दद्यत, देवी दानवघाटनी।
7. कालरात्रि माता देवी का सातवां रूप : इस रूप में देवी माता अन्धकार की आभा वाली हैं।
पूजा की विधि: देवी मां की इस पूजा के दौरान व्यक्ति को अपना सिर ढककर अक्षत का प्रसाद, धूप, सुगंध, रात के फूल और गुड़ का भोग लगाना चाहिए। स्तुति मंत्र एकवेणी जपकर्ण, पूर्ण नग्न सत्य-स्थिति। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी, तैलभ्यक्तशरु-रानी। वैम्पडोलासल्लोह, लतकान्तकभूषण। वर्धनमुर्धध्वज कृष्ण, कालरात्रिभयंकारी।
8. महागौरी माता देवी का आठवां रूप: इस रूप में माता देवी ने सफेद रंग का अलंकरण पहना हुआ है। माता के इस रूप को सफेद वस्त्र पसंद हैं इसलिए इस दिन सफेद वस्त्र धारण करें।
पूजा की विधि : पूजा के दौरान देवी को गंगा जल से स्नान कराएं, सफेद वस्त्र और फूल चढ़ाएं, फिर कुमकुम रोली लगाएं। साथ ही पीड़ित व्यक्ति को मिठाई और पंचमेव का भोग लगाएं और काले चने भी चढ़ाएं. स्तुति मंत्र श्वेते वृष समरुधा, श्वेतांबरधारा शुचि:. महागौरी शुभम दद्यत, महादेव प्रमोद दादा।
9. सिद्धिदात्री माता देवी का नौवां रूप: देवी सिद्धिदात्री देवी इस रूप में कमल सिंहरोधा, शंख, चक्र, गदा और कमल के साथ विराजमान हैं। सिद्धिदात्री आठ उपलब्धियों की दाता हैं।
पूजा की विधि: इस दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है और पूजा के दौरान हवन किया जाता है जिसमें दुर्गा सप्तशती का प्रसाद भी दिया जाता है. स्तुति मंत्र सिद्धगंदरवायक्षद्यै:, असुरिरमाररापी। सेव्यामना सदा भुयत, सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।