साईं बाबा के इन 11 वचनों का जाप करते ही दूर होगी सारी समस्‍या - My Ayurvedam

साईं बाबा के इन 11 वचनों का जाप करते ही दूर होगी सारी समस्‍या

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श्री साई अमृत कथा में बाबा के चरित्र के बारे में बताते हुए, सुमीतभाई पोंदा ‘भाईजी’ बताते हैं कि सभी को विदित है कि साई बाबा बहुत ही कम बोलते थे. वे ज़्यादातर छोटे-छोटे किस्सों और कहानियों में बातें करते थे. अधिकांशतः बाबा उर्दू मिश्रित खानदेशी और क्षेत्रीय बोली के लहजे में हिंदी बोलते थे.

बाबा के समकालीन और उनके भक्तों के अनुभवों को पढने से ज्ञात होता है कि न केवल बाबा त्रिकालदर्शी थे बल्कि परम आध्यात्मिक बातें भी वे इन किस्से-कहानियों से सार्थक रूप से सुनने वालों से कह देते. कई दफ़े यह बात किसी को निशाना बना कर कही जाती तो दूसरे इन्हें समझ नहीं पाते लेकिन जिसकी ओर बाबा का इशारा होता था वह बखूबी यह जान जाता कि बाबा किसकी बात, क्यों कर रहे हैं. यह बाबा के ज्ञान देने की वृत्ति थी.

साई बाबा के भक्तों के जीवन में साई बाबा के 11 वचनों की बहुत अहमियत रहती है. शिर्डी में प्रतिदिन बाबा की प्रातः होने वाली काकड़ आरती और छोटी आरती के बीच, बाबा के श्रृंगार के बाद इन वचनों का मूल मराठी रूपांतरण बजाया जाता है. इसके बाद दासगणु महाराज की लिखी, ‘शिर्डी माझे पंढरपुर..’ आरती गाई जाती है. विश्व भर में साई बाबा के मंदिरों में प्रायः इन 11 वचनों के हिंदी अथवा अंग्रेज़ी में छपे अनुवाद भक्तों की सुविधा के लिए दृष्टव्य रखे जाते हैं और बोले भी जाते हैं.

इन वचनों का वैशिष्ट्य है कि यह इतने साधिकारपूर्वक लहजे में लिखे गए हैं कि ऐसा लगता है कि मानो साई बाबा स्वयं हमारे बीच आकर इन्हें अपने श्रीमुख से ही बोल रहे हैं. यह महसूस होता है कि मानो साई स्वयं इन वचनों के माध्यम से हमारे समक्ष खड़े हो गए हैं और मुस्कुराकर हमारी व्याधियों का नाश करने आये हैं. इन्हें पढ़ने अथवा बोलने वालों के मन में सहज ही साई के इन वचनों से अभयत्व का भाव उत्पन्न होने लगता है. ऐसा महसूस होने लगता है कि हमारी समस्याओं का समस्त समाधान इन्हीं 11 वचनों में कहीं समाया हुआ है.

हमारे मन के भय इनको बोलने या स्मरण मात्र करने से दूर होने लगते हैं. विचारों में शुद्धता आ जाती है. बोल-चाल का रवैया बदल-सा जाता है. बहुत ही मनोयोग से साई के मसीहाई चरित्र को उजागर करते हैं यह 11 वचन. इनको बोलते-बोलते रोमांच का अनुभव होने लगता है. साई बाबा के चरित्र का सार लगते हैं यह 11 वचन.

इन 11 वचनों को संकलित करने का श्रेय श्री मोहिनीराज पंडित को जाता है जो कि बाबा के अनन्य अनुयायी होने के साथ-साथ मालेगांव में शासकीय अधिकारी भी थे और नासिक से राजस्व अधिकारी के रूप में सेवानिवृत्त हुए. उन्होंने कई वर्षों तक साई बाबा संस्थान के प्रकाशन विभाग में भी सेवा दी. साई सगुणोपासना में साई बाबा की मध्यान्ह आरती में गाया जाने वाला अभंग, “अनंता तुला ते कशे रे नमावे..” रचने का श्रेय भी श्री पंडित को ही दिया जाता है.

यह सरलता से माना जा सकता है कि श्री पंडित ने यह 11 वचन 1918 में बाबा के समाधि लेने के बाद 1923 से साई लीला पत्रिका में सिलसिलेवार प्रकाशित हुए दाभोलकर उर्फ़ हेमाडपंत द्वारा रचित श्री साई सच्चरित्र से संकलित किये हैं क्योंकि कहीं भी यह अभिलेखित नहीं है कि बाबा के सदेह रहते यह कार्य हुआ है.

ऐसा प्रतीत होता है कि श्री साई सच्चरित्र से प्रेरित होकर यह कार्य श्री मोहिनीराज पंडित द्वारा बाबा की मर्ज़ी से ही किया गया है क्योंकि इन 11 वचनों में श्री साई सच्चरित्र का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है. एक प्रकार से देखा जाए तो श्री साई सच्चरित्र में कहीं न कहीं उल्लेखित बाबा के द्वारा अपने भक्तों को दिए गए आश्वासनों का ही स्वरूप इन 11 वचनों में दिखता है.

सुनने में तो यह 11 वचन बहुत ही सरल लगते हैं. भक्त इनको फ़र्राटे से बोल भी लेते हैं लेकिन इनके बहुत ही गहरे अध्यात्मिक अर्थ हैं. भक्तों के आध्यात्मिक उन्नयन का कार्य यह 11 वचन करते हैं. इनका वास्तविक अगर अर्थ समझ में आ जाए तो भक्तों का अध्यात्मिक उत्थान तेज़ी से होता है और वो साई के उस खजाने को पा लेते हैं जो साई दोनों हाथों से उन्हें देना चाहते हैं. एक बेहतर व्यक्ति बनने में यह 11 वचन आमजन की मदद करते हैं.

साई बाबा के 11 वचन

1. जो शिर्डी में आएगा, आपद दूर भगायेगा.
2. चढ़े समाधि की सीढ़ी पर, पैर तले दुःख की पीढ़ी कर.
3. त्याग शरीर चला जाऊँगा, भक्त हेतु दौड़ा आऊँगा.
4. मन में रखना दृढ़ विश्वास, करे समाधि पूरी आस.
5. मुझे सदा जीवित ही जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो.
6. मेरी शरण आ ख़ाली जाए, हो तो कोई मुझे बताये.
7. जैसा भाव रहा जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मन का.
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा.
9. आ सहायता लो भरपूर, जो माँगा वह नहीं है दूर.
10. मुझमें लीन वचन, मन, काया; उसका ऋण न कभी चुकाया.
11. धन्य-धन्य वह भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य.

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